मांग भर बिंदिया लगाई जब राधिका ने, लागे जैसे भोरवाला लाल सूरज है झोरी में।
कजरा लगावे तो या लागे कि समुंदर मां, मछरी फँसय लई, मछुओं ने डोरी में।।
गोरे-गोरे मुखड़े पे, घूँघट सुनहरा यूँ, जैसे चांद राखें कोऊ सोने की कटोरी में।
नाक मां नथनियां वा धीरे-धीरे डारे ऐसे, जैसे कोऊ मालदार, ताला दे तिजोरी में ।।