आरती/स्त्रोत
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भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं, स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्। 
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं, अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥1॥

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं, विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्। 
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं, महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णावारणम्॥2॥

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं, व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम्। 
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया, युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥3॥

सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं, दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्। 
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं, समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥ 4॥

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं, यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्। 
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं, दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥5॥

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं, सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम्। 
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलम्पटं, नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्॥6॥

समस्तगोपनन्दनं हृदम्बुजैकमोदनं, नमामि कुंजमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम्। 
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं, रसालवेणुगायकं नमामि कुंजनायकम्॥7॥

विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं, नमामि कुंजकानने प्रव्रद्धवन्हिपायिनम्। 
किशोरकान्तिरंजितं दृअगंजनं सुशोभितं, गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्॥8॥

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा, मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्। 
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान, भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥9॥


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मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।
व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां, सुविभ्रम ससम्भ्रम दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ तड़ित्सुवणचम्पक प्रदीप्तगौरविगहे, मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्ङले।
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशावलोचने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमणि्ते, प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।
अनन्यधन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते, प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमंदहास्यचूणपूणसौख्यसागरे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोलते, लतागलास्यलोलनील लोचनावलोकने।
ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेखकम्बुकण्ठगे, त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्तिदीधिअति।
सलोलनीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण, प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्, समाजराजहंसवंश निक्वणातिग।
विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारूचं कमे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ अनन्तकोटिविष्णुलोक नमपदमजाचिते, हिमादिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपारसिदिवृदिदिग्ध -सत्पदांगुलीनखे, कदा करिष्यसीह मां कृपा -कटाक्ष भाजनम्॥

मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी, त्रिवेदभारतीयश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी, ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥

इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी, करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकमनाशनं, लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डलप्रवेशनम्॥

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ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता,
न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये।
अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं सुंगमात्तवैव,
भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः॥ नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदा,
मुरारि पद पंकज स्फ़ुरदमन्द रेणुत्कटाम।
तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना,
सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम॥ कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला,
विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता।
सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा,
मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता॥ भुवं भुवनपावनीमधिगतामनेकस्वनैः,
प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः।
तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावाकुका,
नितन्बतटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम॥ अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते,
घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे।
विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते,
कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय॥ यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका,
समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम।
तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय,
हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम॥ नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्र मत्यद्भुतं,
न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः।
यमोपि भगिनीसुतान कथमुहन्ति दुष्टानपि,
प्रियो भवति सेवनात्तव हरेर्यथा गोपिकाः॥ स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये,
हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः।
इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम,
स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः॥ तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा,
समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः।
तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति,
स्वभावविजयो भवेत वदति वल्लभः श्री हरेः॥

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जय वृषभान कुँवरि श्री श्यामा। कीरति नंदिनी शोभा धामा।। नित्य बिहारिनी श्याम अधारा। अमित मोद मंगल दातारा।। रास विलासिनी रस विस्तारिनी। सहचरि सुभग यूथमन भावनि।। नित्य किशोरी राधा गोरी। श्याम प्राणधन अति जिय भोरी।। करुणा सागर हिय उमंगिनि। ललितादिक सखियन की संगिनी।। दिनकर कन्या कूल बिहारिनी। कृष्ण प्राण प्रिय हुलसावनि।। नित्य श्याम तुमरौ गुण गावें। राधा राधा कहि हरषावें।। प्रेम स्वरूपिणि अति सुकुमारी। श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी।। नवल किशोरी अति छवि धामा। द्युति लघु लगै कोटि रति कामा।। गौरांगी शशि निंदक बढ़ना। सुभग चपल अनियारे नयना।। जावक युग युग पंकज चरना। नूपुर धुनि प्रीतम मन हरना।। संतत सहचरि सेवा करहीं। महा मोद मंगल मन भरहीं।।

जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिया सुखधाम।
चरण शरण निज दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम।।

रसिकन जीवन प्राण अधारा। राधा नाम सकल सुख सारा।। अगम अगोचर नित्य स्वरूपा। ध्यान धरत निशदिन ब्रज भूपा।। उपजेउ जासु अंश गुण खानी। कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी।। नित्यधाम गोलोक विहारिनी। जन रक्षक दुख दोष नसावनि।। शिव अज मुनि सनकादिक नारद। पार न पायें शेष अरु शारद।। राधा शुभ गुण रूप उजारी। निरखि प्रसन्न होत बनवारी।। ब्रज जीवन धन राधा रानी। महिमा अमित न जाय बखानी।। प्रीतम संग देई गलबाँही। बिहरत नित्य वृन्दावन माँही।। राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा। एक रूप दोउ प्रीति अगाधा।। श्री राधा मोहन मन हरनी। जन सुख दायक प्रफुलित बदनी।। कोटिक रूप धरें नंद नंदा। दर्श करन हित गोकुल चंदा।। रास केलि करि तुम्हें रिझावें। मान करौ जब अति दुख पावें।। प्रफुलित होत दर्श जब पावें। विविध भाँति नित विनय सुनावें।। वृन्दारण्य बिहारिनी श्यामा। नाम लेत पूरण सब कामा।। कोटिन यज्ञ तपस्या करहू। विविध नेम व्रत हिय में धरहू।। तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें। जब लगि राधा नाम न गावे।। वृन्दाविपिन स्वामिनी राधा। लीला बपु तब अमित अगाधा।। स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा। और तुम्हैं को जानन हारा।। श्री राधा रस प्रीति अभेदा। सारद गान करत नित वेदा।। राधा त्यागि कृष्ण को भेजिहैं। ते सपनेहु जग जलधि न तरिहैं।। कीरति कुँवरि लाड़िली राधा। सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा।। नाम अमंगल मूल नसावन। त्रिविध ताप हर हरि मन भावन।। राधा नाम लेइ जो कोई। सहजहि दामोदर बस होई।। राधा नाम परम सुखदाई। भजतहिं कृपा करहिं यदुराई।। यशुमति नंदन पीछे फिरिहैं। जो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं।। राम विहारिन श्यामा प्यारी। करहु कृपा बरसाने वारी।। वृंदावन है शरण तिहारौ। जय जय जय वृषभानु दुलारी।। श्री राधा सर्वेश्वरी, रसिकेश्वर घनश्याम।
करहुँ निरंतर बास मैं, श्री वृंदावन धाम।।

श्री राधे वृषभानुजा, भक्तनि प्राणाधार।
वृन्दावनविपिन विहारिणी, प्रणवों बारंबार।।

मुरली में नित नाम उचारे। तुव कारण लीला वपु धारे।।


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महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।
हरि प्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे॥

पद्मालये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं च सर्वदे।
सर्वभूत हितार्थाय, वसु सृष्टिं सदा कुरुं॥

||आरती ||

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

दुर्गा रुप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी, भव निधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्‍गुण आता।
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता।
उँर आंनद समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...


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ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे...

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
ॐ जय जगदीश हरे...

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ॥
ॐ जय जगदीश हरे...

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ॥
ॐ जय जगदीश हरे...

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख फलकामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे...

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे...

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे...

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे 
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे...


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मनोजवं मारुत तुल्यवेगं, जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम्॥
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं, श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे॥

॥ आरती ॥

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरवर काँपे।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

दे वीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाये॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

लंका जारि असुर संहारे।
सियाराम जी के काज सँवारे॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे।
लाये संजिवन प्राण उबारे॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

पैठि पताल तोरि जमकारे।
अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाईं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥

आरती कीजै हनुमान लला की॥

जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे॥
लंक विध्वंस किये रघुराई।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई॥

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥


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नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥


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कृष्णप्रेममयी राधा, राधाप्रेममयो हरिः।
जीवने निधने नित्यं, राधाकृष्णौ गतिर्मम ।।1।।

कृष्णस्य द्रविणं राधा, राधाया द्रविणं हरिः।
जीवने निधने नित्यं, राधाकृष्णौ गतिर्मम ।।2।

कृष्णप्राणमयी राधा, राधाप्राणमयो हरिः।
जीवने निधने नित्यं, राधाकृष्णौ गतिर्मम ।।3।।

कृष्ण द्रवमयी राधा, राधा द्रवमयो हरिः।
जीवने निधने नित्यं, राधाकृष्णौ गतिर्मम ।।4।।

कृष्ण गृहस्थिता राधा, राधा गृहस्थितो हरिः।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।।5।।

कृष्ण चित्तस्थिता राधा, राधा चित्तस्थितो हरिः।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।।6।।

नीलाम्बराधारा राधा, पीताम्बर धरो हरिः।
जीवने निधने नित्यं, राधाकृष्णौ गतिर्मम ।।7।।

वृन्दावनेश्वरी राधा, कृष्णौ वृन्दावनेशवरः।
जीवने निधने नित्यं, राधाकृष्णौ गतिर्मम ।।8।।


रसिक वाणी
  • वृन्दावन शत लीला
  • श्री हित चौरासी
  • जनक पचीसी
  • सखियों के श्याम
  • किशोरी जू (श्री जी) व्याहुला उत्सव
संत चऱित्र
  • भोरी सखी (भोलानाथ जी )
  • अग्रअली
  • हित हरिवंश