कुंज मधि ग्रीष्म ऋतु सुखदाई।
चंपा बकुल चमेली निवारी रायबेलि जुही बेलि छबाई ।१।
खस गुलाब श्री खंड अतर जल खिड़किन तर टटिया लटकाई ।
कृष्ण चंद्र पिया राधा चरण जब निरखत उर लपटत सरमायी ।२।