राखिलेहु अब नंदकिशोर।
तुमजो इन्द्र की पूजा मेटी बरषत है अति जोर।।
ब्रजवासी सब यौं चितवत है जैसे चंद चकोर।
जिन जिय डरहु नयन जिन मूंदहु धरहों नख की कोर।।
कर अभिमान इन्द्र चढि आयौ करत घटा घन घोर ।
सूरश्याम कहि तुम सब राखै बूंद न आवै छोर।।
इंद्र मानमर्दन लीला ( टैग्स ) : रचना सूची
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