अन्य ( प्रसंग प्रकार ) : रचना सूची
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चंचल चपल चतुर चन्द्रावलि, चाले चटक मटक की चाल।
चन्द्रावलि दधि बेचन चाली । घेरी गैल छैल वन माली । 
दान दधि जोवन देओ चुकाय, दहैंड़ी कौ नेक दही खवाय ।.
कहै यों चन्द्रावलि मुस्काय ।। 
दोहा-
जो कान्हा पल्ले परौ, लाओ पतोआ तोर । 
छोड़ मनसुखा कूॅं गये, मोहन माखन चोर ।।
चन्द्रावलि गई सटक, मार मनसुख के गुलचा गाल । चंचल ...

पत्ता तोर श्याम जब आयेजी । मनसुखलाल रोमते पायेजी ॥
न देखी चन्द्रावलि ब्रजनार, करन लागे मन सोच विचार ।
खिरक में जाय सोये मन मार ॥।
दोहा-
ढूॅंढ़त ढूॅंढ़त डोलती, घर घर जसुमति माय ।
मेरौ बारौ कान्ह कित, गयौ कोई देओ बताय ॥
कहै मनसुखालाल, खिरक में सोय रहे नन्दलाल । चंचल ...

टेरत मात श्याम नहीं बोले । क्यों लाला तू परयौ झटोले ॥
कि तीकूॅं कौनें दीनो गार । कि तोकूँ आवत ताप बुखार ।
बताय दे मेरे प्राण अधार ।
दोहा-
ना काहू गारी दई, ताप न आवत मोय ।
छल कर चन्द्रावलि गई, कहा बताऊ तोय ॥
अपने लाल के चार व्याह करूं, घर चल मदन गुपाल । चंचल ...

समुद बहाऊ मैंया चार बहुरिया जी ।
मेरे मन बसी चन्द्रावलि गुजरिया जी ।
कहै मैंया नेंक मो ढिंग आ, तोय छलि गई तू वाय छलला ॥
चल्यौ तू रीठौरे कूं जा।
दोहा-
इतनी सुनकें श्याम ने, सखी भेष लियौ धार।
लंहगा फरिया पहरकें, कर सोलह श्रृंगार ॥
चले कमर बल खाय, वन गई नव नवरंगी बाल । चंचल ...

तुरत श्याम बन गये जनाने जी । .
जसुदा ने प्रभु नाय पहचाने जी ॥
उरहानों दैन लगें घनश्याम, सामरी सखी बतायौ नाम।
तुम्हारौ छोड़ जाऊॅंगी गाम ॥
दोहा-
जसुदा नें पहिचान कें, लीने कण्ठ लगाय ॥
मैया की आज्ञा लई, राठौरे गये, आय ।।
चन्द्रावलि कौ पूछ रहे घर, सखी बने नन्दलाल । चंचल....

चन्द्रावलि के घर की यही डगरिया जी ।।
ऊॅंची सी अटरिया जामें लगी किवरियाजी ।।
पहुंच गये चन्द्रावलि के द्वार, खोल भैना नेंक झझन किवार।
द्वार पै कब की रही पुकार ।।
दोहा-
चन्द्रावलि कहने लगी, सुनों सखी सुकुमार ।
कहाँ ते आई, नाम कहा, सो मुख ते उच्चार ।।
कहा लगै नाते में आली, कहदे साँची हाल ॥ चंचल ....

चन्द्रावलि सुन साँचे बैना री ।
पीहर ते आई हूं लगू तेरी बैहना री।।
कहै यों चन्द्रावलि समझाय, खिलाई गोद न जन्मी माय ।
कहाँ ते बहिन गई तू आय ॥
दोहा-
चन्द्रावलि ते सामरी सखी लगी यों कहन ।
मामा फूफी के दोऊ, हम तुम लागें बहन ।।
ब्याह तेरे में मोय सासरे, भेज दियौ तत्काल ॥ चंचल ....

मिलत बहिन दोऊ भुजा पसारी जी ।
चन्द्रावलि नें गिरा उचारी जी ॥
कहत में लगै लाज बानी, लगै तेरी छाती मरदानी ।
सामरी सखी कहै स्यानी ॥।
दोहा-
बहना तेरौ निश दिना, करत रहत ही सोच ।
सोच करत में है गई, मेरी छाती पोच ॥।
तेरे देखे बिना बहिन मैंने, पाये दुःख कराल । चंचल ....

चलरी बहिन दोऊ पानी भर लामें जी ।
मिल जुलकें पानी कूॅं जामें जी ॥ 
अचम्भो भयौ सखी मोय आज, कहत में आवै मोकूॅं लाज ।
चले तू चाल मरदई भाज ॥
दोहा-
बालापन में बछरुआ, घेर चराई गाय ।
वही लकब मोय लगरही सुन बहना चितलाय ॥
चाल मेरी मरदानी पै तू, मती करै री ख्याल । चंचल ....

चलरी वहन. तोय उबट न्हबाऊँजी ।
तेल सुगन्धित अतर मिलाऊजी ॥।
सामरी सखी जोर कर हाथ, मेरे घर सेड़ सीतला मात।
सुनी बुढ़िया पुरान में बात ॥
दोहा-
तौ बहिना न्हायौमतो, भोजन करो अघाय ।
सखी सामरी प्रेम ते बड़े बड़े ग्रासन खाय ॥
खीर खांड़ पकवान मिठाई, छके अनेकन माल । चंचल ....

कहत सुनत मोय शरम लगत है री ।
मरदाने तू कौर भरत है री ॥
सामरी सखी करै अरदास, मेरे घर में लड़हारी सास ।
देर जो करूॅं देय॑ दुख त्रास ॥ 
दोहा-
भोजन कर बीड़ा दियौ, फिर है आई रैन ।
पचरंग पलंग बिछाय कें, करो सेज सुख नैन ।।
चरन परोटत में पिड़रिन में लगै खुरदरी खाल । चंचल ....

तेरे विरज में लोग ठिठोरा री ।
कहा बूढ़े कहा जवान छिछोरा री ॥
बताय दई मोकूॅं ऊभट वाट, जहाँ काटे करील के ठाट।
छिली पिंडरी  लंहगा गयौ फाट ॥।
दोहा-
सोलह श्रृंगार उतारकें, पीताम्बर लीयौ धार ।
चन्द्रावलि चकती भई, करन लगी बलिहार ॥।
मैं तोय लाला जबई जान गई, परयौ लखाई जाल । चंचल ....

को तेरी बहिन कौन तेरी बीरा रे।
तू गूजर हम जात अहीरा रे ॥
तनिक दधि कूं छल आई मोय, छली वा कारन मैंने तोय ।
परस्पर बदलौ जग में होय ।
दोहा-
चन्द्रावलि लीला करी, प्रेम भरी - घनश्याम ।
गोबरधन दसबिसे में  छीतर ”घासीराम” ॥
छीतर घासीराम युगलछवि, निरखत भये निहाल । चंचल ....

रसिया घासीराम 11/11/2023

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कियौ महारास प्रभु वन में, वृन्दावन गुल्म लतन में।
बन की शोभा अति प्यारी, जहाँ फूल रही फुलवारी।
सोलह हजार ब्रजनारी, द्वै द्वैन बीच गिरधारी ।।
झड़-
ताथेई-२ नचत, घूंघरू बजत, छुम छन छननन ।
सारंगी सननन करत, तमूरा तननन ।।
सप्त स्वरन सों बजत बांसुरी, घोर भयौ त्रिभुवन में । वृन्दावन ....

वन्शी को घोर भयौ भारी, मोहे सुर मुनि तपधारी।
जड़ पशु पक्षी नर नारी, शिव समाधि खुल गई तारी ।।
झड़-
सुन जमुना जल भयौ अचल, सिथिल भये सकल।
जीव वनचारी मन मोहन बीन बजाय मोहनी डारी ।।
जहाँ के तहाँ थिररहे परी ध्वनि वन्शी की श्रवणनमें । वृन्दावन ....

जब उठ धाँये त्रिपुरारी जमुना कहै रोक अगारी ।
गुरु दीक्षा लेऔ हमारी तब करो रास को त्यारी ।।
झड़-
नहीं पुरुष कौ अधिकार करौ श्रंगार नार बन जाऔ।
तब महाराज के दरशन परसन पाऔ।।
जमुनाजी के वचन सुने शिव जान गये सब मनमें वृन्दावन ....

जब खाय भंग को गोला जमुना में धोय लियौ चोला।
गोपी बन गये बम्भोला यों नवल नार अनबोला।।
झड़-
जहाँ है रह्मो रासविलास, पहुंचगये पास आप अनुरागे।
शिव शंकर सखियन के संग नाचने लागे ।।
भूल गये कैलाशवास हरि है रहे मगन लगन में । वृन्दावन ....

गोपिन संग नृत्य करौ है हिरदे आनन्द भरौ है । 
जब शिव पहचान परौ है गोपेश्वर नाम धरौै है ।।
झड़-
सब गोपी भई प्रसन्न, धन्य प्रभु मधुर वीना की।
कर महारास निशि कीनी, छै महिना की।।
घासीराम कृपासों छीतर बस रहयौ गोवर्द्धन में। वृन्दावन ....

रसिया घासीराम 11/11/2023

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ढोटा नन्दनन्दन ब्रजचन्द्र, वेष धर लियौ सुनारी कौ । 
नख सिख सों बन गये जनाने, पहुँचे जाय तुरत बरसाने ।
लेउ कोई विछुआ ब्रज की नार, सुनें प्रीतम इनकी झनकार ।
खेंचकें मनकूॅं लेय निकार, भरौ है ऐसौ जंत्र अपार ।
दोहा-
जंत्र भरे विछुआन की, रही बढ़ाई मार ।
पनघट मारग कौन ले बेचौ हाट बाजार ।।
गैल गिरारे नाय कोई गाहक, वस्तु तुम्हारी कौ। ढोटा ....

सब गहनौ मेरौ रतन जड़ाऊ हाट बजारन नाय बिकाऊॅं ।
कौन जानें गहने की सार, परख कोई करै राज दरबार ।
सखी एक बोली सोच विचार, चपल चंचल तू सामलनार ।
दोहा-
कारेन को परतीत ना कारों नन्द कुमार ।
वाही की तू मिलनियाँ वाही को उनहार ।।
कबहू ना विश्वास करें, कारे नर नारी कौ । ढोटा ....

चली सुनारी संग सखियन में। 
पहुंची प्यारी के महलन में ।।
पॉंव लग बैठ गई हरसाय, कहा राधें जू नें समझाय।
कहा लाइ सो हमें दिखाय तेरौ सब माल मता विकजाय।।
दोहा-
डिब्बा कूॅं खोलन लगी, प्रेम प्रभाव सुभाव।
प्यारी जी तुम पहिरिये, गहने रतन जड़ाव।।
सुनकें आई नाम दूरते राधा प्यारी कौ ।  ढोटा ....

शीशफूल बंदनी धराई जी । श्रवण झुमका नथ पहराईजी।
नार हेँसली हमेल हिय हार । वारौ वाजूवन्द देत बहार।।
कंकनियाँ गजरे पहोंची डार। आरसी मुदरी छल्लादार ।।
दोहा-
कड़े छडे़ लच्छे पड़े, जडे़ बड़े पुखराज ।
विछुआ पहरे बाजने कोट काम गये लाज ।।
सतगुन खिलौ सुहाग, श्री बृषभान दुलारी कौ । ढोटा ....

ले दरपन राधा मुसक्‍याई । ललिता कूॅं ऐसे समझाई ।
ये गहने लाई रुचिर वनाय। होय सब सौदा लेओ मुल्लाय ।
जो मांगेसो तुम देऔ गहाय । लई गठरी ललिता खुलवाय।
दोहा-
गठरी के गहनेन, में बन्दी पर गई हाथ । 
नाय सुनारी ये भटू, ढोटा गोकुल नाथ ।।
देखौ री देखौ वहिना छल छैल बिहारी कौ। ढोटा ....

कोई लियौ चीर कोई लई चोली जी । 
कोई मुख गुलचा दै हँस बोली जी ।।
काउने फेंटा दियौ वधाय । कोई पीताम्वर रही कछाय ।
छटी जब पुजी जसोदा माय, महूरत कौन घड़ी गयौ आय।
दोहा-
भादों की कारी निशा, जन्मे नन्दकिशोर ।
गोरस चोरी छोडकै अब भये रस के चोर ।।
सखियन करो खिलौना, छौना जसुमति दारी कौ। ढोटा ....

पर गए श्याम सखिन के बस में जी।
प्रेम रसीले है रहे रस में जी ।।
प्रेम कौ पायौ परम प्रसाद, प्रेम परसाद में बड-2 स्वाद।
प्रेम में टूट जाय मरियाद, प्रेंम चल आयौ आदि अनादि।।
दोहा-
प्रेम परीक्षा में गयौ, बासरबीत तमाम।
मिले परस्पर प्रेम ते, भुजमर श्याम श्याम।।
घासीराम नाम रट छीतर श्रीगिरधारी कौ। ढोटा ....

रसिया अज्ञात 11/11/2023

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वन गये श्याम सुघड रंगरेजन चूॅंदर रंगवाय लेऔ प्यारी।
पहुंच गए प्यारी की पौरी जी।
ललिता खबर करन कूॅं दौरीजी।।
तुरत रंगरेजन लई बुलाय, पांय लगबैठ ठगई हषाय।
कही राधे जू नें समझााय।।
दोहा-
चूॅंदर चटकीली रंगौ, रंगरेजन सुकुमार । .
बीच छबरिया रंग भर, कौने अजब किनार।।
खोल पिटारी धरी अगारी, रंगतन्यारी न्यारी। बन गये ....

स्याहा सोसनी सब्ज सिन्दूरी जी ।
असमानी अधकट अंगूरी जी ।।
कपासी कन्नेरी केलई, कपूरी केसरिया कत्थई ।
पिरोजई प्याजू और पिस्तई ।।
दोहा-
नारंगी और नीबुआ जामिन और जंगाल ।
खसखासी और खाकिया धानी तूती लाला ।।
कुसुमरंग कासनी किसमिसी, अगरई और अन्नारी । बन गये ....

गुलनार गेरुआ गुलाबीजी। हारसिंगार अमरजा आवोजी।।
सिदली स्वेत सुर्ख सरदई, सबज, स्याही सरबति सुरमई ।
चन्दनी चमकदार चम्पई ।।
दोहा-
बादापी और बैजनी, और बंसन्ती रंग ।
मलागिरी और मोतिया पचरंगीन प्रसंग ।।
तोतई जौजई जरद मूॅंगिया, करदई कोर किनारी । बन गये ....

चटकीली चूॅंदर रंग दीनी जी ।
बिहसि राधिकानैं धारण कीनी जी।।
रूप दरपन में रही निहार, सखी सब करन लगीं वलिहार।
बड़ी रंगरेजन अजब हुश्यार ।।
छन्द-
चूॅंदर रंगाई की बड़ाई, मुख करी ना जायगी ।
देदेऔ न्योंछावर सखी, बैठी उमर भर खायगी ।।
मुसक्याय मनमोहन गए राधे के लखकें रूप कूॅं ।
पहिचान सखियाँ सब गई, सावल स्वरूप अनूपकूॅं।।
घासीराम जुगल जोड़ीपैे,  छीतरमल बलिहारी । बन गये ....

रसिया घासीराम 11/11/2023

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बन गये मालिन मदन मुरारी, छलवे कूॅ राधा प्यारी।
नख दिख श्रृंगार बनायौ, लखि कामदेव सरमायों । 
फूलन को डला सजायौ, बरसाने ते ध्यान लगायौ।।
झड़-
नाना भांतिन के फूल, चुने चिल्लूल, महक कलियनमें ।
कोई फूल लेऔरी फूल कहत गलियन में ।।
ले गई सखी लिवाय जायकें आदर ते बैठारी । छलवेे कूॅं ....

तू कौन गाम ते आई, को पिता कौन है माई ।
अपनी दै नाम बतायी, तू सुन मालिन की जाई ।
झड़-
मम अचल पिता है नाम, है गोकुलगाम, भक्ति है माता।
सामरी सखी मोय कहे सुनो अन्नदाता ।।
सुनकें नाम श्री राधेजी, आई पौर तिहारी । छलवे कूॅं ....

कहाँ गोकुल मथुरा जानो, कहाँ नन्दगांव बरसानों । 
तौय कहा विधि लग्यौ ठिकानों, कैसे भयौ तेरौ आनौ।
झड़-
तुम्हरे पितु नृप बृषभान, सुयश की खान और ठकुराई।
राधा को नाम रह्यौ तीन लोक में छाई ।।
ऐसे नाम ग्राम की बेटी, जानें सब संसारी । छलवे कू ....

जानी तेरी चतुराई, तू कहा कहा सौदा लाई ।
नेंक दै तू हमें दिखाई, तेरी लेंगे वस्तु मुल्याई ।
झड़-
फूलन के गजहार, बने छविदार गुथायी कीनी ।
वन्दनी झुमका कली कली चुन दीनी।।
जो रुचिहोसो लेओ मोय आये भई बहुत अबारी । छलवे कूॅं ....

तू मत कह देरी देरी, अब सुनले मालिन मेरी।
देहों तोय द्रव्य घनेरी, इच्छा, होय पूरन तेरी ।।
झड़-
मैं बडे़ घरन को नार, सुनों सुकुमार लोभ नहीं धनकौ।
सौदा मेरो तुम समझौ प्रेम रतन को ॥
प्रेम प्रभाव सुभाव चाव को, वनी फिरूॅं व्यौपारी। छलवे कूॅ ....

फूलन की करै बिकाई, क्यों हमते करत बढ़ाई ।
तू कहा अधिक इतराई, तेरी सेखी नाय समाई।।
झड़-
सब सुर नर मुनि लख रहे, बैठ थक रहे ध्यान में लामें ।
प्यारी जी ऐसे फूल उन्हे नहीं पामें ।। 
वा मोहन की बाग बड़ौ है, फूल रही फुलवारी । छलवे कूॅं .....

मोहन को बाग बतायौ, राधा मन मोद बढ़ायो ।
महलन में पलंग बिछायौ, आदर कीयौ मन मायौ । 
झड-
अब है आयी रैन, करो सुख सैन चैन सों रहियै ।
बनरा में मन की बात, प्रात उठ जइयै ।।
सुने प्रेम के बचन श्यामने, सुधिबुध सकल विसारी । छलवे कूॅं ....
भये प्रेम बिबस बनवारी, धर ध्यान लगा गये तारी ।
लखि गयी वृषभान दुलारी, ये छलिया छैल विहारी ।। 
झड-
जब भेंटे भुजा पसार, परस्पर प्यार, मगन भये मनमें ।
मन मोहन मदन मुरार मिले महलन में । 
घासीराम नाम के ऊपर छीतरमल बलिहारी । छलवे कूॅं .... 

रसिया घासीराम 11/11/2023

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कान्हा ने जौगिन भेष बनायौ, बरसाने में अलख जगायौ।
सिर जटा जूट छवि छाई श्रवणन मुद्रिका सुहायी।
सब अंग भभूति रमायी, मृगछाला बगल दबायी।।
झड़-
गती को गैरुआ रंग, झलक रह्यो अंग, डार गलसैनी ।
चितचोर चपलबन गये जोगन अलबेली।।
अलख-2 कहें खोल पलक फिर सिंगीनांद बजायो । बरसाने ...

राधा की दृष्टि परी है, कर जोर प्रणाम करी है । .
तू ओर ही प्रेम भरी है, तेरी सुधि बुधि कौन हरी है ।
झड़ -
तृ बड़े भूप की कुंवरि है, वारी उमर रूप रंग बरसे ।
क्यों जोग लियौ, अनुराग दृगन में दरसे ।।
चलरी चल लै चलूॅं तोय घर, देख हियौ हरसायौ । बरसाने ....

मुख आवै वही बंखानों, नहीं जोग जुगत पहिचानों ।
तपसिन को अन्त न पानों, मत जोग खिलौना जानों ।
झड़ -
हम तन साधें मन मार, करें आहार बीनकें वनफल ।
संसार छोड़ क्यों बसे, गृहस्थिन घर चल ।।
काम क्रोध मद लोभ मोह, हन पाँचन कूॅं विसरायौ । वरसाने ....

हैं ज्ञान सुधन बलिहारी, हम जोग जगत व्यौपारी ।
है अलख पुरुष आधारी, गिरवरन की विचरन हारी।.
झड़-
हम भोजन भूखे नहीं, कहे हम सही, न इच्छा कोई ।
बिरमें जहाँ प्रीति प्रभाव सु आदर होई ।।
बिना प्रीत आदर के मनुआ, विरमें ना विरमायौ । बरसाने ....
 .
आदर हम करें तुम्हारौ, गहवर बन आप पधारौ। 
है प्रेम कौ भाव हमारौ, ब्रज में बसि होय निस्तारौ ।
झड़-
हम यही करें अरदास, रहौ तुम पास, निकट बरसानों ।
भानोखर न्हानों, सन्तन के मन मानों ॥।
बड़े भाग्य ब्रज वास मिले, जानें लिलार लिखबायौ । बरसाने ....

रहें ग्राम निकट संसारी, हम वन खंड के तपधारी ।
नित कर्म धर्म आहारी, हम बसें न पौर तिहारी ॥
झड़- 
हम जोग रचें वनखंड, है ज्योति अखंड, झलाझल झलके।
खड़े सप्तद्वीप नवखंड, जोग तप बल के ।।
हम हैं रमते राम ग्राम ग्रेहिनके लिए  बतायौ । बरसाने ....

पृथ्वी सिर शेष सुनी है, सब बस रहे देश दुनी है ।
कोई सुनों न ऋषि मुनि है, जैसो निपुण तू गुनी है ।।
झड़-
तू करै अकहनी बात, नहीं सकुचात, सत्य नहीं बोले ।
मन की नहीं खोलै, जोगिन वनकें डोलै ॥
सामल गात बात तेरी मोय, सुन सुन अचरज आयौ । बरसाने ....

तुमें प्रीत प्रतीत नहीं है, अति अनुचित बात कही है। 
कहते कछू और रही है, लघु उमर सुता अबही हैं ।।
झड-
तुम बेठौ घर में जाय, कहूं समझाय मिली भौगिनसों ।
प्यारीजी तुमकूॅं काम कहा जोगिन सों ।।
करो ज्ञान की बात ध्यान धर, क्यों गुमान सौ छायौ । बरसाने ...

तन में नांय दुर्बलताई, मन में न उदासी छाई ।
तेरो देख चपल चंतुराई सबकौ मन जाय लुभाई।।
झड़-
तेरे चंचल द्रग चितचोर, चलें चहूॅं और ये मोयपरेखौ।
तप लक्षण मैंने एक न तोमें देखो ।।
सील स्वभाव सदा सन्तोषी, साधू वहीं कहायौ । बरसाने ....

हम जानत हैं गोपिन की, है परख तुम्हें गोधन की।
कहा जानों जोगीजन की, मनकी और तप लक्षणकी ।।
झड़-
तुम किन गुन करो निदान, नहीं पहचान संतकी आवे ।।
है दुर्लभ पद निर्वान सहज नहीं पावै ।।
जोगिन के घर दर बड़े हैं, पार कितहू ना पायौ । बरसाने ....

प्यारी ने भुज भर लीनी, बेैठार भवन में दीनी । 
मोय पलिंग देउ रंग भीनी, मनमिलनी चतुर प्रबीनी ।।
झड़-
करें भूमि पर सैन, संन्त दिन रैन यही है रीती । 
तब मारग तजकें, करै मती अनरीती ।।
भोगिन हैं जोगिन बाने कौ कंसौ रूप सजायौ । बरसाने ....

है बज्र तुम्हारौ हीयौ, मेरौ अच्छौे आदर कीयौ।
तुम ज्ञान संत कूॅं दीयौ, अवतार कलू नें लीयौ ।।
झड़-
प्यारीनें भुज फिर गही, बात यह कही खेद मतलाऔ।
तुम करो रैंन भर सैन, कही न चित लाऔ।।
छन्द-
भई प्रेम बस जोगित बिकल, बैठी जो गहकर मौन है।
देखी सखी पहचानियों ये श्याम सुरत कौन है।
पूरन परीक्षा कर लई, लक्षण दिखायी दे गये।
सिंगार बदलौं श्याम नें, जोगिन ते जोगी है गये ।
घासीराम नाम को यश कछु छीतरमल ने गायों है । बरसाने ....

रसिया घासीराम 11/11/2023

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जसोदा सुन मायी तेरे लाला ने माटी खाई ।
अद्भुत खेल सखन संग खेलौ, इतनों सो मांटी को डेल्‍यौ ।
तुरत श्याम ने मुख में मेलौ, जानें गटक-2 गटकाई।।
माखन को कबहू ना नाँटी, क्यों लाला तेनें खाई माँटी।
धमकाबै जसुदा लै साँटी, जाय नेंक दया नाँय आई ।।
ऐसी स्वाद नाँय माँखन में, नाय मिश्री मेवा दाखन में । 
जो रस ब्रजरज के चाखन में, जानें मुक्तिकी मुक्तिकराई।।
मुख के माँहि आगुरी मेली निकर परी माँटी की डेलो ।
भीर भई सखियन की भेली, जाय देखें लोग लुगाई ।।
मोहन को - म्होड़ो फरवायौ तीन लोक वैभव दर्शायौ।
जब विश्वास जसोदाए आयौ, ये तौ पूरनब्रम्ह कन्हाई ।।
ब्रजरज कूॅं सुरनर मुनि तरसें, धन्यभाग्य जो नितप्रति परसें।
जिनकी लगन लगी होय हरसें, कहैं घासीराम सुनाई ।।

रसिया घासीराम 11/11/2023

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रसिया अज्ञात 11/11/2023