चंचल चपल चतुर चन्द्रावलि, चाले चटक मटक की चाल।
चन्द्रावलि दधि बेचन चाली । घेरी गैल छैल वन माली ।
दान दधि जोवन देओ चुकाय, दहैंड़ी कौ नेक दही खवाय ।.
कहै यों चन्द्रावलि मुस्काय ।।
दोहा-
जो कान्हा पल्ले परौ, लाओ पतोआ तोर ।
छोड़ मनसुखा कूॅं गये, मोहन माखन चोर ।।
चन्द्रावलि गई सटक, मार मनसुख के गुलचा गाल । चंचल ...
पत्ता तोर श्याम जब आयेजी । मनसुखलाल रोमते पायेजी ॥
न देखी चन्द्रावलि ब्रजनार, करन लागे मन सोच विचार ।
खिरक में जाय सोये मन मार ॥।
दोहा-
ढूॅंढ़त ढूॅंढ़त डोलती, घर घर जसुमति माय ।
मेरौ बारौ कान्ह कित, गयौ कोई देओ बताय ॥
कहै मनसुखालाल, खिरक में सोय रहे नन्दलाल । चंचल ...
टेरत मात श्याम नहीं बोले । क्यों लाला तू परयौ झटोले ॥
कि तीकूॅं कौनें दीनो गार । कि तोकूँ आवत ताप बुखार ।
बताय दे मेरे प्राण अधार ।
दोहा-
ना काहू गारी दई, ताप न आवत मोय ।
छल कर चन्द्रावलि गई, कहा बताऊ तोय ॥
अपने लाल के चार व्याह करूं, घर चल मदन गुपाल । चंचल ...
समुद बहाऊ मैंया चार बहुरिया जी ।
मेरे मन बसी चन्द्रावलि गुजरिया जी ।
कहै मैंया नेंक मो ढिंग आ, तोय छलि गई तू वाय छलला ॥
चल्यौ तू रीठौरे कूं जा।
दोहा-
इतनी सुनकें श्याम ने, सखी भेष लियौ धार।
लंहगा फरिया पहरकें, कर सोलह श्रृंगार ॥
चले कमर बल खाय, वन गई नव नवरंगी बाल । चंचल ...
तुरत श्याम बन गये जनाने जी । .
जसुदा ने प्रभु नाय पहचाने जी ॥
उरहानों दैन लगें घनश्याम, सामरी सखी बतायौ नाम।
तुम्हारौ छोड़ जाऊॅंगी गाम ॥
दोहा-
जसुदा नें पहिचान कें, लीने कण्ठ लगाय ॥
मैया की आज्ञा लई, राठौरे गये, आय ।।
चन्द्रावलि कौ पूछ रहे घर, सखी बने नन्दलाल । चंचल....
चन्द्रावलि के घर की यही डगरिया जी ।।
ऊॅंची सी अटरिया जामें लगी किवरियाजी ।।
पहुंच गये चन्द्रावलि के द्वार, खोल भैना नेंक झझन किवार।
द्वार पै कब की रही पुकार ।।
दोहा-
चन्द्रावलि कहने लगी, सुनों सखी सुकुमार ।
कहाँ ते आई, नाम कहा, सो मुख ते उच्चार ।।
कहा लगै नाते में आली, कहदे साँची हाल ॥ चंचल ....
चन्द्रावलि सुन साँचे बैना री ।
पीहर ते आई हूं लगू तेरी बैहना री।।
कहै यों चन्द्रावलि समझाय, खिलाई गोद न जन्मी माय ।
कहाँ ते बहिन गई तू आय ॥
दोहा-
चन्द्रावलि ते सामरी सखी लगी यों कहन ।
मामा फूफी के दोऊ, हम तुम लागें बहन ।।
ब्याह तेरे में मोय सासरे, भेज दियौ तत्काल ॥ चंचल ....
मिलत बहिन दोऊ भुजा पसारी जी ।
चन्द्रावलि नें गिरा उचारी जी ॥
कहत में लगै लाज बानी, लगै तेरी छाती मरदानी ।
सामरी सखी कहै स्यानी ॥।
दोहा-
बहना तेरौ निश दिना, करत रहत ही सोच ।
सोच करत में है गई, मेरी छाती पोच ॥।
तेरे देखे बिना बहिन मैंने, पाये दुःख कराल । चंचल ....
चलरी बहिन दोऊ पानी भर लामें जी ।
मिल जुलकें पानी कूॅं जामें जी ॥
अचम्भो भयौ सखी मोय आज, कहत में आवै मोकूॅं लाज ।
चले तू चाल मरदई भाज ॥
दोहा-
बालापन में बछरुआ, घेर चराई गाय ।
वही लकब मोय लगरही सुन बहना चितलाय ॥
चाल मेरी मरदानी पै तू, मती करै री ख्याल । चंचल ....
चलरी वहन. तोय उबट न्हबाऊँजी ।
तेल सुगन्धित अतर मिलाऊजी ॥।
सामरी सखी जोर कर हाथ, मेरे घर सेड़ सीतला मात।
सुनी बुढ़िया पुरान में बात ॥
दोहा-
तौ बहिना न्हायौमतो, भोजन करो अघाय ।
सखी सामरी प्रेम ते बड़े बड़े ग्रासन खाय ॥
खीर खांड़ पकवान मिठाई, छके अनेकन माल । चंचल ....
कहत सुनत मोय शरम लगत है री ।
मरदाने तू कौर भरत है री ॥
सामरी सखी करै अरदास, मेरे घर में लड़हारी सास ।
देर जो करूॅं देय॑ दुख त्रास ॥
दोहा-
भोजन कर बीड़ा दियौ, फिर है आई रैन ।
पचरंग पलंग बिछाय कें, करो सेज सुख नैन ।।
चरन परोटत में पिड़रिन में लगै खुरदरी खाल । चंचल ....
तेरे विरज में लोग ठिठोरा री ।
कहा बूढ़े कहा जवान छिछोरा री ॥
बताय दई मोकूॅं ऊभट वाट, जहाँ काटे करील के ठाट।
छिली पिंडरी लंहगा गयौ फाट ॥।
दोहा-
सोलह श्रृंगार उतारकें, पीताम्बर लीयौ धार ।
चन्द्रावलि चकती भई, करन लगी बलिहार ॥।
मैं तोय लाला जबई जान गई, परयौ लखाई जाल । चंचल ....
को तेरी बहिन कौन तेरी बीरा रे।
तू गूजर हम जात अहीरा रे ॥
तनिक दधि कूं छल आई मोय, छली वा कारन मैंने तोय ।
परस्पर बदलौ जग में होय ।
दोहा-
चन्द्रावलि लीला करी, प्रेम भरी - घनश्याम ।
गोबरधन दसबिसे में छीतर ”घासीराम” ॥
छीतर घासीराम युगलछवि, निरखत भये निहाल । चंचल ....