वृषभानु नंदिनी मधुर कल गावै।
विकट औंघर तान चर्चरी ताल सौं, नंदनंदन मनसि मोद उपजावै।।
प्रथम मज्जन चारु चीर कज्जल तिलक, श्रवण कुंडल वदन चंदनि लजावै।
सुभग नकबेसरी रतन हाटक जरी, अधर बंधूक दसन कुंद चमकावै।।
वलय कंकन चारु उरसि राजत हारु, कटिव किंकिनी चरन नूपुर बजावै।
हंस कल गामिनी मथति मद कामिनी, नखनि मदयंतिका रंग रुचि द्यावे ।।
निर्त्त सागर रभसि रहसि नागरि नवल, चंद चाली विविध भेदनि जनावै।
कोक विद्या विदित भाइ अभिनय निपुन, भू विलासनि मकर केतनि नचावै।।
निविड़ कानन भवन बाहु रंजित रवन, सरस आलाप सुख पुंज बरसावै।
उभै संगम सिंधु सुरत पूषन बधु, द्रवत मकरंद हरिवंश अली पावै।।81।।