लटकति फिरति जुवति रस फूली।
लता भवन में सरस सकल निसि, पिय सँग सुरत हिंडोरे झूली।।
जद्दपि अति अनुराग रसासव पान विवस नाहिंन गति भूली।
आलस वलित नैंन विगलित लट, उर पर कछुक कंचुकी खूली।।
मरगजी माल सिथिल कटि बंधन, चित्रित कज्जल पीक दुकूली।
(जै श्री) हित हरिवंश मदन सर जरजर , विथकित स्याम सँजीवन मूली।।77।।